Thursday, 19 May 2016

अर्जुन की जीत -निति और धर्म का साथ

अर्जुन की जीत -निति और धर्म का साथ



कई बार जीवन में लक्ष्य की तरफ बढ़ने के लिए हमारे सामने दो राहे  होती है,  उनमे से कौन सी अधिक सही  है एवं हमें अपने लक्ष्य तक ले कर जाएगी ये निर्णय कर पाना  बड़ा मुश्किल होता है, परन्तु राह  भले ही कठिन क्यों न हो नितिगत और धर्म की राह  पर चलने वाला हमेशा ही हमें अपने गंतव्य पर पहुंचाता है , ये समझने के लिए प्रस्तुत है महाभारत का एक अति सुन्दर प्रसंग जिसने युद्ध का निर्णय बदला।  
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भगवान श्रीकृष्ण दोपहर के समय की नींद ले रहे थे और पूर्ण आलस्य के साथ चहरे में आकर्षक मुस्कान के भाव लिए अपने शरीर को आराम देने के लिए उसे खिंच कर सोने की कोशिश कर रहे थे , नींद लगी ही थी की दुर्योधन का वंहा आना हुआ, उसने आते ही देखा भगवान श्रीकृष्ण सो रहे है तो वो उनके  पैरो की तरफ बैठने  के लिए पंहुचा और तुरंत ही उसे मन में अहसास हुआ की मैं पैरो की तरफ कैसे बैठ सकता हु , शायद उससे अपने आप को महराजा  समझ लिया और वो उनके सिर के पीछे जा कर बैठ गया।

कुछ ही समय पश्चात अर्जुन का आना हुआ उसे श्रीकृष्ण के पैरो के पास बैठना बहुत अच्छा लगा , उसे शायद उनके पैरो के दर्शन करना बहुत अच्छा लग रहा था।  कुछ देर बाद जैसे ही प्रभु की नींद खुली उनकी निगाह अर्जुन पर पढ़ी , "ओह अर्जुन। .तुम यंहा , कैसे आना हुआ ", बीच में ही दुर्योधन ने भी  अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी , भगवान श्रीकृष्ण ने का कहा "अरे दुर्योधन तुम भी , दोनों एक समय कैसे आना हुआ ".

तब दोनों ने भगवान कृष्णा को बताया की हम युद्ध करने जा रहे है और हम चाहते की आप हमारी तरफ से युद्ध करे , चूँकि श्रीकृष्ण के पास एक बड़ी १०००० से अधिक युद्ध कौशल में निपुण सैनिकों की सेना थी और उनके सहयोग से दोनों में से किसी भी एक का पलड़ा भारी हो सकता था।  तब श्री कृष्ण ने कहा " आप दोनों एक समय मेरे पास आये हो और मैं दोनों की ही ना नहीं कर सकता , तो दोनों को एक उपाय देता हु आप में से कोई एक मुझे अपनी तरफ ले लेवे और दूसरा मेरी सेना को , पर एक बात का ध्यान हो की मैं युद्ध नहीं लड़ूंगा , परन्तु आप दोनों यंहा साथ आये हो , फिर भी मेरी निगाह अर्जुन पर पहले पड़ी तो मैं मेरी सेना और मुझमे से किसी एक को चुनने का अवसर पहले दूंगा " , दुर्योधन ने कहा की पहले तो मैं आया , इस पर श्री कृष्ण ने कहा "मेरी नजर पहले अर्जुन पर पड़ी , वो मेरी आँखों के सामने बैठे थे"। Click to read other blogs

तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा की आप हम दोनों में से किसी एक को चुन सकते हो , इस पर अर्जुन ने कहा "भगवान , मुझे तो सिर्फ आप चाहिए , मुझे सेना की चिंता नहीं , बस मैं चाहता हु हमारी तरफ आप हो " , भगवान श्रीकृष्ण ने चेतावनी देते हुए कहा , मैं सिर्फ तुम्हारे साथ रहूँगा , युद्ध नहीं लड़ूंगा ", इस पर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा "प्रभु हमें सिर्फ आप चाहिए बस , आपको कुछ नहीं करना है " , दुर्योधन ने प्रसन्न होते हुए और चैन की गहरी सांस लेते हुए सोचा की पांडव मुर्ख है पर इतने मुर्ख है की इन्हे एक व्यक्ति में और जो की युद्ध भी नहीं करेगा और युद्ध कौशल ने निपुण सैनिकों की सेना के बीच अंतर नहीं आया ,उसने सोचा क्या मूर्खता पूर्ण निर्णय है।

महाभारत के युद्ध में सेना और कृष्ण में से किसी एक को चुनने के इस निर्णय ने ही हार और जीत का निर्णय किया।

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