शनि (Saturn)
का नाम सुनते ही अच्छे अच्छो पसीने छूटने लगते है और जब बात साढ़े साती की
आ जाये तब चाहे वो ग्रहो के खेल को नहीं नहीं मानने वाले बहुत बड़े
रुस्तम ही क्यों न हो शनि देव का भय सताने लगता है। जिंदगी में जैसे ही कोई झटका
लगता है और संघर्ष की शुरुआत होती है तो सबसे पहले शनि देव का ख्याल मन में आता है की कंही साढ़े साती
तो शुरू नहीं हो गयी ?
शनि कर्म प्रधान , न्याय प्रिय और आम व्यक्ति का
प्रतिनिधि करने वाला ग्रह है। शनि जैसा कोई दाता ग्रह नहीं और शनि की तरह ही कोई न्याय कर के दण्ड देने वाला ग्रह नहीं, ये जो प्रताड़ना और संघर्ष की बात हम करते है दरअसल ये शनि का न्याय होता है , अगर कुंडली में शनि कमजोर अवस्था में है तो ये आपके भाग्य में पूर्व पूण्य की कमी दर्शाता है , कमजोर शनि आपको कष्ट दे कर कर्मो के दण्ड से मुक्त करते है , प्रबल शनि कुंडली में आ कर सद्कर्मो का फल प्रदान करते है।
शनि के शुभ फल के लिए आवश्यकता होती है
ईमानदारी से अपने कर्म करने की , मन में अच्छे और बुरे के बीच की समझ रखने
की , स्पष्ठवादिता और झूठ से बचने की और विशेष अपने से कमजोर वर्ग के प्रति आदर और सम्मान का भाव रखने की ,
जन्म कुंडली में अगर शनि कमजोर है तो वो फल प्राप्ति के लिए आवश्यकता से
अधिक प्रयास करवाता है और अगर कुंडली में शनि मजबूत अवस्था में है तो कम
प्रयासों में ही बहुत अच्छा फल प्राप्त होता है। प्रबल शनि जन समर्थन दिलाता है और राजयोग प्रदान करता है , यही नियम साढ़े साती पर भी
लागु होता है , जिस तरह से शनि की दशा का प्रभाव शनि के मजबूत और कमजोर
होने पर पड़ता है ठीक उसी तरह से कुंडली में शनि की स्थिति पर साढ़े साती का
प्रभाव निर्भर करता है। अगर शनि बहुत अच्छी स्थिति में है और जातक सही
कर्म और आचरण से जुड़ा है तो अवश्य ही साढ़े साती काल के दौरान उसे अच्छा लाभ
होगा , जनता के बीच रहने वाले Narendra Modi साढ़े साती काल के दौरान ही Prime Minister बने , जनता का ऐसा समर्थन मिला जो आजतक किसी को नहीं मिला, दूसरी तरफ कमजोर शनि वाले लोगो
को साढ़े साती या ढैय्या काल के दौरान बहुत परेशानियों से और क़ानूनी दण्ड से गुजरना पड़ता है।
काल
पुरुष राशि चक्र में दशम (10th ) और एकादश (11th ) भाव शनि (Saturn ) की राशि के भाव कहे गये है और
ये भाव क्रमशः कर्म (profession) और लाभ (gains & income) के भाव है अर्थात ये तो सिद्ध है कर्म कर के ही लाभ की प्राप्ति
होगी , शनि का दोनों ही भावो पर एकाधिकार है। ऊर्जा और शक्ति के ग्रह मंगल (mars ) को
शनि का शत्रु कहा गया है, मंगल की राशि मेष में में आ कर शनि नीच का हो
जाता है और मित्र शुक्र की राशि तुला में आ कर शनि उच्च की परिस्थिति में
होता है। शनि का प्रत्येक भ्रमण काल (Transit Duration) लगभग ढाई वर्ष का होता है।
शनि के हर गोचर के
साथ एक़ राशि पर से साढ़े साती समाप्त होती है और एक नयी राशि पर शुरू होती
है, हमेशा तीन राशियाँ साढ़े साती के प्रभाव में रहती है , अब इन तीन राशियों में अगर राशि शनि की मित्र राशि है और कुंडली में भी शनि अच्छी अवस्था में है तो फल उत्तम होगा अन्यथा साढ़े साती का काल कष्टकर होगा। अगर किसी की राशि वृषभ है तो साढ़े साती शुरू होगी शनि के मेष राशि में भ्रमण से जो की शनि की नीच की राशि है , अर्थात वृषभ (Taurus) राशि वालो के लिए साढ़ेसाती का पहला काल अत्यन्त कष्टकर होगा , सामान परिस्थिति उत्तम होगी कन्या राशि वालो के लिए जब शनि का पहला भ्रमण सिंह राशि में होगा जो शनि की शत्रु राशि है , परन्तु तुला राशि के लिए पहला भ्रमण कन्या में होगा और दूसरा तुला में , जो की दोनों की समय लाभ प्रदान करेंगे। Narendra Modi की राशि है वृश्चिक और शनि भी 10th House में है जो की उत्तम फल प्रदान करता है , पहला ढैय्या था तुला (Libra) में जो की शनि की उच्च की राशि है अतः मई 2014 में साढ़े साती में वे साढ़े साती काल के दौरान Prime Minister बने।
शनि का विध्वंस (destruction) कर्क राशि में भी देखा गया है , चन्द्रमा के स्वामित्व वाली कर्क राशि (cancer) जल तत्व की बड़ी सुन्दर राशि है , राशि चक्र की 4th राशि होने के कारण मानसिक सुख , पारिवारिक सुख और मातृत्व सुख का प्रतिनिधित्व करने वाली इस राशि में जब पृथकतावादी (separative nature) ग्रह शनि जाता है तो भावनाओ और पारिवारिक सुख से दूर करने हेतु विध्वंस कर विपरीत परिस्थितियां निर्मित करता है। कर्क राशि में शनि चाहे भ्रमण करी हो या फिर कुंडली में स्थित हो परिस्थितियां विपरीत ही होती है।
भारतवर्ष (Bharat) की कुंडली में तृतीय भाव (3rd House) में कर्क राशि (cancer) में सूर्य ,बुध और शुक्र के साथ चन्द्रमा और शनि भी है , यंहा तृतीय भाव भारत वर्ष के उत्तर क्षेत्र (कश्मीर) वाला क्षेत्र है जलीय एवं सूंदर कर्क राशि के वंहा होने से सुन्दर तो है पर शनि सूर्य के वंहा होने से विवादित और हिंसा को झेलते हुए दुखद परिस्थिति में भी है।
बुध (mercury) को शनि का मित्र ग्रह कहा गया है अतः उसकी राशि में शनि आर्थिक तेजी और समृद्धि प्रदान करता है, शनि का मिथुन और कन्या राशि में भ्रमण भी हमेशा ही आर्थिक दृष्टिकोण से उत्तम कहा गया है। गुरु की राशि में भी शनि का होना शनि के स्वभाव को शांत करता है ऊपर से शनि पर गुरु की दृष्टि हो तो फल और अधिक उत्तम होता है , परन्तु शनि और राहु जैसे क्रूर ग्रहों की दृष्टि उसके क्रोध को और बढाती है फलस्वरूप मानसिक अशांति का योग निर्मित होता है।
जिस प्रकार के ग्रहों और राशि से शनि का सम्बन्ध बनता है तक उसी प्रकार की मानसिक परिस्थितिया निर्मित होती है और उन्ही में मनुष्य जीवन यापन करता है।
शनि की कुंडली में स्थिति किसी के भी व्यक्तिगत जीवन में संघर्ष और दुःख के लिए नियंत्रक का कार्य करती है, जितनी अच्छी स्थिति शनि की कुंडली में होगी उतना ही सुखी जीवन होगा। शनि कार्मिक ग्रह है अतः शनि की प्रताड़ना से बचने का एक मात्र उपाय अपने कर्मो पर अपना पूर्ण नियंत्रण होना ही है , किसी भी प्रकार की गलती, दुर्भावना , झुठ और लक्ष्य प्राप्ति की जल्द बाजी ही शनि की प्रताड़ना का कारन बनती है।
शनि का विध्वंस (destruction) कर्क राशि में भी देखा गया है , चन्द्रमा के स्वामित्व वाली कर्क राशि (cancer) जल तत्व की बड़ी सुन्दर राशि है , राशि चक्र की 4th राशि होने के कारण मानसिक सुख , पारिवारिक सुख और मातृत्व सुख का प्रतिनिधित्व करने वाली इस राशि में जब पृथकतावादी (separative nature) ग्रह शनि जाता है तो भावनाओ और पारिवारिक सुख से दूर करने हेतु विध्वंस कर विपरीत परिस्थितियां निर्मित करता है। कर्क राशि में शनि चाहे भ्रमण करी हो या फिर कुंडली में स्थित हो परिस्थितियां विपरीत ही होती है।
भारतवर्ष (Bharat) की कुंडली में तृतीय भाव (3rd House) में कर्क राशि (cancer) में सूर्य ,बुध और शुक्र के साथ चन्द्रमा और शनि भी है , यंहा तृतीय भाव भारत वर्ष के उत्तर क्षेत्र (कश्मीर) वाला क्षेत्र है जलीय एवं सूंदर कर्क राशि के वंहा होने से सुन्दर तो है पर शनि सूर्य के वंहा होने से विवादित और हिंसा को झेलते हुए दुखद परिस्थिति में भी है।
बुध (mercury) को शनि का मित्र ग्रह कहा गया है अतः उसकी राशि में शनि आर्थिक तेजी और समृद्धि प्रदान करता है, शनि का मिथुन और कन्या राशि में भ्रमण भी हमेशा ही आर्थिक दृष्टिकोण से उत्तम कहा गया है। गुरु की राशि में भी शनि का होना शनि के स्वभाव को शांत करता है ऊपर से शनि पर गुरु की दृष्टि हो तो फल और अधिक उत्तम होता है , परन्तु शनि और राहु जैसे क्रूर ग्रहों की दृष्टि उसके क्रोध को और बढाती है फलस्वरूप मानसिक अशांति का योग निर्मित होता है।
जिस प्रकार के ग्रहों और राशि से शनि का सम्बन्ध बनता है तक उसी प्रकार की मानसिक परिस्थितिया निर्मित होती है और उन्ही में मनुष्य जीवन यापन करता है।
शनि की कुंडली में स्थिति किसी के भी व्यक्तिगत जीवन में संघर्ष और दुःख के लिए नियंत्रक का कार्य करती है, जितनी अच्छी स्थिति शनि की कुंडली में होगी उतना ही सुखी जीवन होगा। शनि कार्मिक ग्रह है अतः शनि की प्रताड़ना से बचने का एक मात्र उपाय अपने कर्मो पर अपना पूर्ण नियंत्रण होना ही है , किसी भी प्रकार की गलती, दुर्भावना , झुठ और लक्ष्य प्राप्ति की जल्द बाजी ही शनि की प्रताड़ना का कारन बनती है।