ये गुरु की वो व्याख्या है जो बचपन से हमें बताई गयी है , भगवान तो सर्वश्रेष्ठ है ही ये तो तर्क का विषय हो ही नहीं सकता साथ ही गुरु प्रथम पूज्यनीय और वन्दनीय इसलिए है क्योकि वो हमें प्रभु तक पहुचने का मार्ग बताते है। गुरु की महानता ये होती है की वो अपने शिष्य को हमेशा भगवान का ही रास्ता दिखाता है, स्वयं भगवन नहीं बन जाता । प्रभु निराकार है , उसको देखना हमारी इन साधारण आँखों के बस की बात नहीं , गुरु उस निराकार शक्ति को महसूस करना बताता है , जीवन की बहुत सी गूढ़ बाते हम समझ नहीं पाते उन्हें समझाता है और जीवन की कठनाई से जूझते हुए प्रभु की प्राप्ति तक का मार्ग हमें दिखाता है, गुरु ही हमें ईश्वर पर श्रद्धा और किसी भी कठिनाई से जूझने के लिए सब्र रखना सिखाता है , यही कार्य किया परम पूज्य गुरु देव साईनाथ महाराज ने ।Click to read my other blogs
बहस छिड़ी की वे हिन्दू ही नहीं मुसलमानो द्वारा भी मानें जाते है , परन्तु क्या उंन्होने समझने दिया की वो क्या थे , हिन्दू या मुसलमान। उन्होंने तो सिर्फ इंसानियत और मानवता की ही बात करी , गुरु वही जो छोटे और बड़े में भेद न करे , वंहा अमीर गरीब सब एक है , पैसा ,धन ,संपत्ति , सोने का छत्र और लाखो करोडो का चढ़ावा , ये तो हमने चढ़ाया और उन्हें पैसे से जोड़ा , उन्होंने तो सिर्फ मिल बाँट कर खाया और खाना सिखाया। वो एक परम योगी थे , उन्हें एक संत का जीवन जिया , ता जिंदगी आडम्बर और भोग से दूर रहे , उन्होंने अपने आप को कभी किसी धर्म विशेष से नहीं जोड़ा , उन्होंने मानवता को ही धर्म माना , जिस संत ने पुरे गांव को महामारी से बचाया , पुरे गांव के लिए सूखे कुवे में पानी भर दिया हो , ये देखे बिना की यंहा किस किस धर्म के लोग रहते है , वो संत किसी धर्म के लिए खतरा कैसे हो सकता है। जिसने सिर्फ दिया ही दिया हो उसकी पूजा करे या न करे उसके लिए आज बहस कर के हम उसका अपमान क्यों करे , गुरु तो सिर्फ गुरु है , धर्म , जाती और उंच नीच से ऊपर , शिष्य के लिए गुरु सर्वोपरि होता है और गुरु सिर्फ अपने शिष्य को सर्व श्रेष्ठ बनाना चाहते है , गुरु का कार्य तो सिर्फ मार्ग बताना है और वो ही हमेशा साईं करते आये है। गुरु और शिष्य के बीच धर्म की दीवार खड़ी नहीं की जा सकती है ये दोनों ही अलग विषय है इन्हे साथ जोड़ कर हम दोनों का अपमान नहीं कर सकते।
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गुरु के महत्व को हमारे सभी संतो, ऋषियों एवं महान विभूतियों ने उच्च स्थान दिया है।संस्कृत में ‘गु’ का अर्थ होता है अंधकार (अज्ञान)एवं ‘रु’ का अर्थ होता है प्रकाश(ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाते हैं। मानव मन में व्याप्त बुराई रूपी विष को दूर करने में गुरु का विषेश योगदान है। महर्षि वाल्मिकी जिनका पूर्व नाम ‘रत्नाकर’ था। वे अपने परिवार का पालन पोषण करने हेतु दस्युकर्म करते थे। महर्षि वाल्मिकी जी ने रामायण जैसे महाकाव्य की रचना की, ये तभी संभव हो सका जब गुरू रूपी नारद जी ने उनका ह्दय परिर्वतित किया। मित्रों, पंचतंत्र की कथाएं हम सब ने पढी या सुनी होगी। नीति कुशल गुरू विष्णु शर्मा ने किस तरह राजा अमरशक्ती के तीनों अज्ञानी पुत्रों को कहानियों एवं अन्य माध्यमों से उन्हें ज्ञानी बना दिया।Click here to Visit my facebook page..
गुरू शिष्य का संबन्ध सेतु के समान होता है। गुरू की कृपा से शिष्य के लक्ष्य का मार्ग आसान होता है, स्वामी विवेकानंद जी को बचपन से परमात्मा को पाने की चाह थी। उनकी ये इच्छा तभी पूरी हो सकी जब उनको गुरू परमहंस का आर्शिवाद मिला। गुरू की कृपा से ही आत्म साक्षात्कार हो सका। छत्रपति शिवाजी पर अपने गुरू समर्थ गुरू रामदास का प्रभाव हमेशा रहा।
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आचार्य चाणक्य ऐसी महान विभूती थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया। गुरू चाणक्य कुशल राजनितिज्ञ एवं प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में विश्व विख्यात हैं। उन्होने अपने वीर शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य को शासक पद पर सिहांसनारूढ करके अपनी जिस विलक्षंण प्रतिभा का परिचय दिया उससे सभी लोग परिचित है।
गुरु के बिना कल्याण की कल्पना अधूरी है , लक्ष्य की प्राप्ति के लिए गुरु का सानिध्य अति आवश्यक है , आज समाज जिस जगह खड़ा है उसे एक दिशा की आवश्यकता है , आशा है सद्गुरु अपने आशीष की वर्षा से सभी को सही दिशा , ज्ञान और शांति प्रदान करेंगे।Click to read my other blogs
गुरुब्रह्मा गुरुविर्ष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।