Friday, 7 August 2015

शांति की दौड़ में पिछड़े हम

 शांति की दौड़ में पिछड़े हम-- (Why we are Left Behind in List of Peaceful countries?)

कई  महान संतो और दार्शनिको का कहना है की नम्बरो की दौड़ में हम शांति (Peace) को नहीं पा सकते , ये सत्य भी है क्योंकि शांति के लिए हमें दौड़ से बाहर हो कर एक जगह बैठना होगा , हमारे अपने साथ , अपने लिए , परन्तु ये क्या बुद्धा , महावीर और गांधी का देश शांत देशो की सूचि (List of Peaceful countries) में १४३ वे नम्बर पर।  क्या हम उन आदर्शो और संदेशो को भूल गए है जो  इन्होने हमें दिए थे जो या दौड़ इतनी रोमांचक हो गयी की हम  किस चीज़ के लिए दौड़ रहे है ये ही भूल गए और  शांति को पाने के लिए अशांति फ़ैलाने की हद कर दी।

पिछले दिनों अख़बार में सबसे छोटी पर सर्वाधिक दुखद खबर छपी की Bharat सबसे Peaceful countries  की सूचि में १४३वे नम्बर पर है , शायद इसे बहुत कम लोग दुखद खबर माने क्योंकि शांति के मायने बदल गए है , शायद अब भौतिकता , विलासिता और अपने आप को Powerful सिद्ध करने की प्रतियोगिता में अव्वल आने पर ही हमें शांति मिलती है और दुर्भाग्य से ये तीनो ही बाते हाईवे पर चल रही कार की तरह है की इन्हे पा लेने पर फिर कोई न कोई  हमसे आगे दिखाई दे जाता  है और हम फिर से हताश हो कर  उस प्रतियोगिता में तेजी से आक्रामक हो हम दौड़ना  शुरू कर देते है,   अंततः इस प्रतियोगिता से हम अशांत  हो अपने मन को उद्विग्न किये जा रहे है।

ये अशांति ,उद्विग्नता और चिड़चिड़ापन हमें कान्हा अंदर ही अंदर खा रहा है हमें समझ ही नहीं आ रहा , जब हम कमजोर हो रहे है तो अवश्य हमारा परिवार और समाज भी ,और फिर राष्ट्र कमजोर हो रहा है , शांति (Peace ) की दौड़ में पिछड़ रहा है , जरुरत है हमें अपने आप से प्रतियोगिता करने की ।

बात बहुत छोटी सी है ,अगर हम  शांति और संतुष्टि   के क्षेत्र में प्रतियोगिता आरम्भ कर दे तो इस सूचि  में बहुत तेजी से   अव्वल आते जायेंगे क्योकि अंततः प्रतियोगिता शांति की है चाहे  देशो के बीच या हमारे अपने प्रतियोगियों के समूह  में , अपने आप को व्यस्त और लक्ष्य प्राप्ति के लिए परेशान कर एक उम्र में जा कर शांति को प्राप्त करने से कंही अच्छा है की सही उम्र में   दुसरो के लिए प्रेरक बना जाये।  संतुष्टि का अर्थ ये कदापि नहीं की Professional Life और भौतिक सुखो का पूर्णतः त्याग कर दिया जाये अपितु ये है की दौड़ कर उन्हें प्राप्त करने के बजाये धैर्य से उनकी प्राप्ति तक के समय का इंतज़ार किया जाये , ये  बात ठीक वैसी ही होगी की सिनेमाघर में टिकिट की लाइन में अपना इंतज़ार किये बिना धक्का मुक्की कर मजा किरकिरा करे या थोड़ा धैर्य रख ले और आनंदपूर्वक मूवी देखे।

इस बात में कोई शक नहीं की Materialistic Comforts  ने धैर्य में एक हद से अधिक कमी  की है , हम किसी आने वाले  का इंतज़ार नहीं करते हुए उसके आने के पहले फ़ोन लगा चुके होते है , इस आदत ने सहनशीलता में कमी की है ,  छोटा सा ट्रैफिक जाम हमें तेजी से पच्चीसों बार हॉर्न बजाने और दुसरो पर चीखने पर मजबूर करता है जबकि सब ही आपकी परिस्थिति में फसे है , ये बाते छोटी नहीं इस  धैर्य (Patience ) की कमी ने विचारो को असंतुलित कर दिया है जो हमारे पारिवारिक, व्यावसायिक और सामाजिक क्षेत्र में बड़े विवाद पैदा करने  का कारन बन रहे है।

बात महंगे फ़ोन को त्यागने की नहीं उसकी अनावश्यक आदत को कम करने की है , आलीशान कारों  को छोड़ने या उनकी लालसा न रखने की नहीं , कुछ समय पैदल चलने की आदत डालने की है ताकि हम दुनियॉ को बिना   शीशे के भी देख सके , पैदल चलते हुए कुछ मित्र बना सके।   क्यों हम  अपने Culture को छोड़ पाश्चात्य संस्कृति (western Culture) के गुलाम हो रहे है जो हमारी परेशानी का मूल कारन है ,वो देश जो हमसे आगे है,  वो इसलिए आगे नहीं की वे पाश्चात्य संस्कृति के है बल्कि इसलिए है क्योंकि उन्होंने अपनी संस्कृति (Culture), आचार , विचार , भाषा और व्यव्हार को नहीं त्यागा।

हमारी पीढ़िया और अशांत हो उसके  पहले हमें धैर्य रखना सीखना आवश्यक है ताकि उन्हें धैर्य सीखा सके, उन्हें बताना जरुरी है की किसी से अपने आप की तुलना नहीं करनी है बल्कि सिर्फ अपने आप से करनी है। मित्रो तभी सुख  और शांति (Peace) प्राप्त होगी और सही मायने में हम समृद्ध हो पाएंगे।

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Pankaj Upadhyay
Indore


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