रावण दहन - (अच्छाई या) बुराई का दहन
युग बीत गए दशहरे पर बुराई के प्रतिक रावण का दहन करते हुए , परन्तु ये बुराई तो कम होने का नाम नहीं ले रही , असुरो की तरह बुराई की रक्त के हर बून्द से एक नयी बुराई पैदा होते जा रही है, ये सामाजिक रूप से ही व्याप्त नहीं है बल्कि व्यक्तिगत रूप से भी हम सभी किसी न किसी बुराई के शिकार है , समाज मनुष्य से बनता है और व्यक्तिगत बुराई ही सामाजिक बुराई बनती है।Click here to visit my facebook page
हम अगर रावण को बुराई का ही प्रतिक मान रहे है तो हम सबके अंदर रावण है, फिर हम रावण की किस बुराई का अंत कर रहे है , इस बात पर तो हमने कभी विश्लेषण किया ही नहीं और न कभी इस बात पर बहस छिड़ी।
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ब्रम्हा के पुत्र महर्षि पुलस्त्य के पौत्र महाज्ञानी रावण जिन्होंने कभी अपने ज्ञानार्जन की लालसा को कम नहीं किया और उस ज्ञान को बांटने में भी कोई संकोच नहीं किया , यंहा तक की अपने शत्रु श्री राम के भाई लक्ष्मण को भी , महा पंडित रावण को राजनीती के ज्ञान के अलावा ज्योतिष ,आयुर्वेद और चारो वेदो का परम ज्ञान था , उनके द्वारा लिखे अर्क शास्त्र और रावण संहिता उसके उदहारण है। उन्होंने अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया , शास्त्रो के अनुसार जब भगवान शिव उनके तप से प्रसन्न नहीं हुए तो उन्होंने अपना एकमात्र सिर उन्हें अर्पित किया , जिसके परिणाम स्वरुप उन्हें शिव से वरदान में दस सिर और कई अस्त्र प्राप्त हुए , इस तप बल में उनमे छुपा महान त्याग और धैर्य दिखता है। कई क्षेत्रो में पौराणिक कथाओ में कहा ये भी जाता है की युद्ध काल के दौरान श्री राम के घायल होने पर स्वयं रावण ने अपने चिकित्सकीय ज्ञान से उन्हें ठीक किया ,जो रावण के व्यव्हार कुशलता की तरफ इंगित करती है। Click here to visit my facebook page
रावण का वास्तु कला और विज्ञानं के प्रति प्रेम और ज्ञान किसी से छुपा नहीं , लंका उस काल का एक बहुत ही सुन्दर राज्य था , जिसे पाने की लालसा सभी देवो में रही। उन्होंने अपने आप को एक कुशल शासक के तौर पर सिद्ध भी किया , साथ ही एक योद्धा के रूप में। श्री राम द्वारा ब्रम्हास्त्र का उपयोग करने पर रावण ने परास्त होने का मार्ग चुना क्योंकि रावण के पास भी अपना ब्रम्हास्त्र था और दोनों ही पक्षों द्वारा उसके उपयोग कर लिए जाने पर प्रकृति और जन समूह की भीषण हानि हो सकती थी। भगवान राम ने स्वयं युद्ध समाप्ति पर उनसे कहा की आपने मेरी पत्नी सीता का अपहरण किया , जो एक घृणित अपराध था , जिसके परिणाम स्वरुप मेरी आपसे शत्रुता थी और अब उसका अंत हुआ अर्थात उन्हें सजा देने के बाद स्वयं उस शत्रुता को समाप्त माना और लक्ष्मण से कहा की वे रावण से उनके द्वारा अर्जित ज्ञान प्राप्त करे।
रावण की पत्नी मंदोदरी बहुत सुन्दर थी और राजकीय कार्यो में भी बहुत निपुण महिला थी , रावण द्वारा उन पर अविश्वास या प्रताड़ित करने के बारे में शास्त्रो में कोई उल्लेख नहीं है अर्थात उनका दांपत्य जीवन के प्रति बहुत अच्छा समर्पण था। Click here to read other blogs
राम तो मर्यादा पुरुषोत्तम थे ही पर रावण के भी गुणों का जितना वर्णन किया जा सके वो कम है , रावण के बिना राम अधूरे है उनकी भी सबसे बड़ी उपलब्धि के रूप में हम रावण के वध को ही स्थान देते है वंही रावण की सबसे बड़ी बुराई थी उसका अहंकार जिसने उन्हें सीता के हरण जैसे कार्य के लिए प्रेरित किया , इसी अहंकार की वजह से उसने श्री हनुमान का तिरस्कार किया जो की स्वयं रावण के इष्ट भगवन शिव के अंश थे।
हर व्यक्ति के अंदर राम और रावण है, राम को मर्यादा और रावण के ज्ञान व गुण को देख कर दोनों का होना आवश्यक भी है, आवश्यकता सिर्फ अहंकार को जलने की है अगर रावण को जलाएंगे तो बहुत कुछ जलेगा और जल रहा है , सभी बुराइया अपने चरम पर है , ये शायद इस लिए है क्योंकि हम रावण को बुराइयो का प्रतीक मान रहे है जबकि करना हमें अपनी बुराइयो का दहन है।Click here to read other blogs
उस परम ज्ञानी महा पंडित शिव भक्त जिसे श्री राम ने भी सम्मान दिया , हम भी सम्मान स्वरुप उनकी प्रतीकात्मक देह को अग्नि को समर्पित करे और अपने अहंकार का दमन करे , यही समाज , देश और स्वयं के हित में है।
पंकज उपाध्याय
इंदौर
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