ॐ मंगलमूर्तये नमः
ॐ विनायक चतुर्थी : विघ्नहर्ता भगवन श्रीगणेश की कृपा से सभी संकटो के निवारण का दिन
ॐ एकदन्ताय विद्धमहे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ति प्रचोदयात्॥
विनायक चतुर्थी को संकट चतुर्थी और संकट हरण चतुर्थी भी कहा जाता है, चतुर्थी भगवान श्रीगणेश का प्रिय दिवस अर्थात तिथि है, हर माह के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को संकटी चतुर्थी कहा जाता है। (संकष्टी चतुर्थी) इसका महत्व मंगलवार के दिन आने से और अधिक बढ़ जाता है, सभी चतुर्थी में अंगारकी संकट चतुर्थी महत्वपूर्ण और सभी संकटो का नाश करने वाली मणि जाती है, मंगलवार के दिन आनेवाली इस चतुर्थी को अंगारकी संकटी चतुर्थी कहा जाता है।Click here to read other Blogs
वैसे तो संकष्टी चतुर्थी हर माह आती है फिर भी भाद्रपद के माह में आने वाली चतुर्थी सर्वाधिक महत्व वाली होती है , जिसे पूरा देश गणेश चतुर्थी के नाम से मनाता है।
प्रत्येक संकष्टी चतुर्थी के दिन उपवास रख विघ्नहर्ता मंगलमूर्ति भगवान श्रीगणेश के दर्शन कर और उन्हें सिन्दूर और दूर्वा अर्पित कर लड्डुओं का भोग लगाता है , उसके सारे संकटो का नाश बुद्धि के देवता श्रीगणेश करते है और समृद्धि एवं सुख प्रदान करते है।
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कहा जाता है भगवान श्रीगणेश के इस महत्वपूर्ण व्रत का वर्णन स्वयं वासुदेव श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से किया था, इस महत्वपूर्ण दिवस का उल्लेख नरसिम्हा पूर्ण और भविष्य पूर्ण में भी है।
पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी के दिन उपवास रखने और श्रीगणेश का ध्यान करने से श्मंगलमूर्ति श्रीगणेश जीवन में व्याप्त सभी प्रकार की विघ्न और संकटो का नाश करते है। जो लोग संकटो से घिरे है उन्होंने इस दिन सुबह सूर्योदय के पूर्व उठ कर जल्दी स्नान कर सरल मन से श्री गणेश का ध्यान करते हुए उनकी मूर्ति /तस्वीर के सामने शुद्ध घी दीपक लगा कर, दूर्वा और फूल अर्पित कर संकटो के निवारण हेतु प्रार्थना करनी चाहिए , साथ ही थोड़ा सा मोदक और लड्डू का प्रसाद भी अर्पित करे और फिर आरती करनी चाहिए पूरा दिन भोजन का त्याग कर एक समय फल का आहार लिया जा सकता है। Click here to read other Blogs
इस दिन मन में संकल्प ले कर यथाशक्ति यथासम्भव ॐ गं गणपतये नमः मंत्र का जप करे , इस विधान से श्रीगणेश अवश्य ही प्रसन्न होते है। संध्या के समय चन्द्रोदय के पश्चात चन्द्रमा को जलार्पण कर , खीर के प्रसाद का भोग लगा कर (चन्द्रमा की दिशा में उन्हें शांत मन से देखते हुए) चन्दन , अक्षत और फूल अर्पित करते हुए गणेशजी का ध्यान करे। इस पूजा को पूर्ण कर भोजन ग्रहण करे।
पुजा के दौरान जप किया जाने वाला मंत्र :
वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा
भगवान श्रीगणेश की कृपा से संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने वाले समस्त भक्तो के संकट समाप्त होते है और सुख , समृद्धि , वैभव, सदबुद्धी और सफलता प्राप्त होती है। Click here to read other Blogs
जय श्री गणेश