Friday 30 July 2021

मानसिक अवसाद का बढ़ता जाल


मानसिक अवसाद का बढ़ता जाल - जिम्मेदार कौन?

आज से अधिक से अधिक दो दशक पहले क्या कभी किसी ने सोचा था कि डिप्रेशन अर्थात मानसिक अवसाद क्या होता है, विदेशियों को होने वाला ये रोग हमारे देश में कैसे आ गया? आज तो ये संक्रामक रोग की तरह तेजी से बढ़ रहा है और देश का नौन्नीहाल ,जिसके कंधो पे पूरे देश का बोझ है वो छोटी छोटी बातो पर मानसिक अवसाद का शिकार हो गलत कदम उठा रहा है।

दरअसल इसका जिम्मेदार हमारा समाज यानी  हम सब है, आधुनिकता और विलासिता की दौड़ में आगे बढ़ते हुए हमने कब अपने बच्चो को आपसी प्रतियोगिता में ऐसा झोंक दिया की वो अपने सगे ,संबंधियों और अत्यंत निकट के रिश्तों में भी प्रतियोगिता में लग गए, इस प्रतियोगिता के लिए मानसिक रूप से तैयार करने हेतु हमने बचपन से उन्हें सुख और सुविधाओ के मोह जाल में बांधा, अच्छे से अच्छा बेडरूम, फोन, गाड़ी ,कपड़े और वो सारी सामग्री जो उसे उनका गुलाम और मानसिक रूप से कमजोर बना सकती थी, पुरानी पीढ़ी को बचपन से हरकुछ बांटना सिखाया जाता था, कपड़े , बड़े भाई बहन की अध्ययन सामग्री छोटो को, साइकिल ,यहां तक कि भोजन भी साथ बैठ के खाना सिखाया जाता था और सब लड़ते झगड़ते बड़े होते थे, मजाक मजाक में एक दूसरे को पीटना और नीचा दिखाना सहन शक्ति को बढ़ाता था।

माता पिता भी बच्चो को अपना गुस्सा निकलने हेतु कभी भी छोटी मोटी गलती पर हाथ साफ कर दिया करते थे, बच्चो के गुस्सा करने और बहस करने पर डबल प्रसाद मिलता था, इससे बच्चो में  जाने अंजाने  संघर्ष करने की शक्ति विकसित होती थी जो बड़े होने पर काम आती है, शिक्षको को भी लज्जित और अपमानित कर कुटाई का पूर्ण अधिकार था पर आज परिस्थिति ठीक विपरीत है, शिक्षको के हाथ माता पिता द्वारा बांध दिए गए है, माता पिता स्वयं बच्चो को थोड़ा सा नाराज होने पर उनकी जरूरतों को पूरा करने में लग जातें है।

दरअसल बच्चो को संयुक्त परिवार में अनौपचारिक रूप से एक विषय पढ़ाया जाता था, क्राइसेस मैनेजमेंट, जिसमे कम सुविधाओ के साथ खुश रहना, बांटने की आदत, असफल होने पर भी प्रसन्न हो संघर्ष करते रहना और बढ़ो से सीखते रहना ये सिखाया जाता था। ये विषय की क्लास अब घर में नही ली जाती जो बच्चे को वयस्क होने पर अकेला और कमजोर बना देती है, जाने अंजाने वो अपनो से प्रतियोगिता करता है और पीछे रहने पर मानसिक अवसाद से घिर जाता है।

देश की रक्षा करने वाले सैनिकों को जहां लड़ना सिखाया जाता है वहीं विपरीत परिस्थितियों से कैसे बाहर आना उसके लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार किया जाता है, वैसे ही हमारे होनहारों को भी किसी भी प्रकार की विपरीत अपरिस्थिति के लिए मानसिक रूप से तैयार रखना आवश्यक है, कई बार ये छोटे लम्हे बड़ा नुकसान दे जाते है जबकि उनसे धैर्य रख लड़ लिया जाए तो जीत हमारे सामने होती है।

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पंकज उपाध्याय
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